Read this essay in Hindi language to learn about the consumer protection act of India.
आज का युग अति स्पर्द्धा का युग है । बाजार में नाना प्रकार के उत्पाद हैं तथा प्रतिदिन नये उत्पादककर्ता अपने नये उत्पाद को बाजार में ला रहे हैं । उत्पादककर्ता अपने उत्पाद को प्रचलित करने के लिए तथा अपनी साख जमाने के लिये विभिन्न प्रकार के हथकण्डे अपना रहे हैं, जिसका प्रभाव उपभोक्ता पर पड़ता है ।
अत: आज जहाँ उपभोक्ता विक्रेता के अनैतिक व्यवहार से दुःखी हैं, वहीं उसे अधिक मूल्य पर कम गुणवत्ता वाली वस्तुएँ प्राप्त हो रही हैं । विभिन्न निर्माताओं द्वारा निर्मित वस्तुओं के मूल्यों में भारी अन्तर तो होता ही है, इसके साथ-साथ मिलावटी व नकली वस्तुएँ भी बाजार में अधिक मात्रा में आ रही हैं जिससे उपभोक्ता को खरीददारी करने में कठिनाइयों होती हैं, जिस कारण उनके अन्दर असन्तुष्टि की भावना पनप रही है ।
हमारे देश के अधिकांश उपभोक्ताओं की धारणा है कि वे नकली, मिलावटी व खराब वस्तुओं की कानूनी शिकायत करने में व्यर्थ अपना समय व पैसा क्यों नष्ट करें । पुराने समय में जनसंख्या सीमित होने के कारण उपभोक्ता व उत्पादक के बीच में आपसी सम्बन्ध मानवीय व मधुर होते थे, परन्तु आजकल इस प्रकार के सम्बन्ध देखने को भी नहीं मिलेंगे ।
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विक्रेता उपभोक्ता को बेवकूफ बनाकर अधिक से अधिक लाभ उठाना चाहते हैं तथा वे उपभोक्ता को होने वाली परेशानी व हानि के बारे में सोचते ही नहीं । उत्पादक समझते हैं कि उपभोक्ता का पक्ष अत्यन्त कमजोर होता है एवं वे कुछ कर ही नहीं सकते ।
भारत सरकार ने उपभोक्ता के अधिकारों की सुरक्षा के लिये कई कानून बनाये हैं । इन कानूनों से उपभोक्ता को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संरक्षण प्राप्त होता है । इन कानूनों के तहत कोई भी उपभोक्ता किसी भी व्यापारी के खिलाफ अपनी औपचारिक शिकायत दर्ज करके न्यायालय में मुकदमा कर सकता है । उपभोक्ता में जागरूकता पैदा करने के लिये सरकार प्रयत्नरत है तथा सरकार की ओर से दूरदर्शन, अखबार, मैग्जीन आदि में निम्न विज्ञापन जोर-शोर से प्रचलित किये जा रहे हैं; जैसे: ”जागो ग्राहक जागो” – “उपभोक्ताओं सावधान”
ये सभी विज्ञापन उपभोक्ता को उनके अधिकार बताते हैं तथा उन अधिकारों की रक्षा किस प्रकार की जाये, इसके लिये सरकार अपना क्या योगदान दे सकती है, इससे भी अवगत कराते हैं । इसके साथ-साथ सरकार विभिन्न उत्पादों के मूल्यों पर अपना नियन्त्रण रखती है ।
सरकार द्वारा प्रतिदिन के उपयोग की वस्तुओं को जनता को उपलब्ध कराने के लिये सुपर बाजार, केन्द्रीय भण्डार घर, जनता बाजार, मदर डेरी या नन्दिनी डेरी (बैंगलौर में) आदि खोले गये हैं । सरकार द्वारा उपभोक्ता को विज्ञापनों द्वारा इस बात की जानकारी दी जाती है कि उत्पादकों द्वारा की जा रही धोखाधड़ी की शिकायतें कहाँ तथा कैसे दर्ज करवा सकते हैं तथा दोषी उत्पादककर्ता को किस प्रकार सजा मिल सकती है ।
न्यायपालिका जो उपभोक्ता संरक्षण के नियम में आती है निम्न प्रकार हैं:
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इस प्रकार इन न्यायपालिकाओं के द्वारा ग्राहक/उपभोक्ता अपने शोषण व अधिकार हनन के खिलाफ शिकायत दर्ज करके क्षतिपूर्ति की माँग कर सकता है तथा निर्माता/विक्रेता द्वारा की गई लापरवाही से हुई हानि/तकलीफ के लिये मुआवजे की माँग कर सकता है ।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम: (Consumer Protection Act):
भारत सरकार द्वारा बनाये गये अधिनियम नियम निम्न प्रकार हैं:
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(1) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (CPA/ (COPRA)):
यह अधिनियम 24 दिसम्बर, 1986 में बनाया गया तथा इसे 15 अप्रैल, 1987 को देश के सभी राज्यों में लागू किया गया था, केवल जम्मू व कश्मीर को छोड्कर । यह अधिनियम उपभोक्ताओं के अधिकारों व उत्तरदायित्वों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने का कार्य करता है ।
इस अधिनियम के अन्तर्गत उपभोक्ता अपनी शिकायतें कर सकता है और उसकी आसान क्षतिपूर्ति उपलब्ध कराने की माँग कर सकता है । इस अधिनियम के अन्तर्गत उपभोक्ता वस्तुओं व सेवाओं के खिलाफ अपनी शिकायतें निजी कम्पनियों एवं सरकारी विभागों के खिलाफ भी कर सकते हैं । इन शिकायतों को निपटाने के लिये जिला, राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर पर अदालतें स्थापित की गयी हैं ।
(2) भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम (Bureau of Indian Standard Act):
इस अधिनियम के तहत उन उत्पादों को गुणवत्ता चिन्ह दिया जाता है, जो भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा निश्चित किये गये मानदण्डों के अनुकूल हों । भारतीय मानक ब्यूरो उत्पादों पर उनमें प्रयोग सामग्रियों, उत्पादन की विधि, लेबल, पैकिंग, भण्डारण तथा क्रय के लिये मानक प्रमाण-पत्र देती है ।
भारतीय मानक ब्यूरो ISI चिह्न उत्पादों के पूर्ण निरीक्षण करने के पश्चात् देता है जो कि गुणवत्ता नियन्त्रण के लिये होता है । इस अधिनियम के अन्तर्गत ISI चिन्ह का दुरुपयोग करने को भी प्रतिबन्धित करता है । ISI चिन्ह के प्रमुख उत्पादक हैं: कुकिंग, तेल, घी, डिटर्जेंट, प्रेशर कुकर, प्रेस, गीजर, पानी गर्म करने की रॉड, गैस का चूल्हा, एल.पी.जी, सिलिन्डर आदि ।
(3) कृषि उत्पाद अधिनियम (Agriculture Product Act):
इस अधिनियम के तहत खेती या कृषि उत्पादों पर सरकार ‘एगमार्क’ चिह्न लगाता है । इस मार्क से यह सिद्ध होता है कि वस्तु की गुणवत्ता व शुद्धता की अच्छी तरह जाँच-परख करने के पश्चात् वह पैक की गई है । खाद्य पदार्थों पर इनका उपयोग होता है; जैसे: गेहूँ का आटा, सूजी, मैदा, बेसन, दालें, मसाले, घी, तेल, चीनी, शहद आदि ।
(4) दवा एवं सौंदर्य प्रसाधन अधिनियम (Drugs and Cosmetic Act):
विभिन्न प्रकार की दवाइयों तथा सौन्दर्य प्रसाधन की वस्तुयें इस अधिनियम के अन्तर्गत आती हैं । यह अधिनियम इस बात को सुनिश्चित करता है कि बाजार में बेची जा रही उपरोक्त वस्तुएँ प्रामाणिक गुणवत्ता वाली हैं तथा उसका मूल्य उपभोक्ता से प्राप्त करने के लिये उचित कैशमीमो व बिल विक्रेता को देना पड़ेगा ।
(5) आवश्यक वस्तु अधिनियम (Necessary Items Act):
सरकार इस अधिनियम के अनुसार इस बात को सुनिश्चित करती है कि बाजार में मिलने वाली सभी आवश्यक जीवनरक्षक व जीवनोपयोगी वस्तुएँ व सेवाएँ उचित आ पर उपभोक्ता को प्राप्त हों । सरकारी सूची के अनुसार आवश्यक वस्तुएँ हैं: अनाज, दालें, चीनी, कोयला, पेट्रोल व पेट्रोलियम उत्पाद, लोहा, स्टील, सूती व ऊनी कपड़े, दवाएँ, कागज, पशुओं का चारा आदि ।
(6) खाद्य सामग्री में मिलावट से बचाव अधिनियम (Food Adulteration Prevention Act):
इस अधिनियम के अनुसार विक्रेता द्वारा उपभोक्ता को मिलावटी व खराब खाद्य सामग्री के खिलाफ सुरक्षा प्रदान होनी है ।
(7) एकाधिकार और प्रतिबंधक व्यापार कार्य अधिनियम (MRTR):
इस अधिनियम के अनुसार, उपभोक्ताओं को विक्रेता-निर्माता के गलत व्यापार आचरण से सुरक्षा प्राप्त करती है । जैसे; झूठे व भ्रम उत्पन्न करने वाले विज्ञापन देना, उत्तम उत्पाद के स्थान पर घटिया उत्पाद बेचना, जमाखोरी और कालाबाजारी करना आदि । व्यापारियों को किसी भी प्रकार की प्रतियोगिता या लॉटरी का आयोजन करने पर रोक लगाता है, जिसमें व्यापारियों की मंशा पुरस्कार राशि देने का कोई इरादा न हो ।
(8) बाँट व नाप मानक अधिनियम (Weight and Measure Standard Act):
इस अधिनियम के अनुसार दोषपूर्ण बाँटों व नापों का उपयोग वर्जित है । इस अधिनियम के अनुसार, प्रत्येक उत्पाद पर लगा लेबल पूरे विस्तार से होना चाहिए ।
(9) फल उत्पाद आदेश (FPO):
इस अधिनियम में फल व सब्जी उत्पादकों द्वारा उत्पादन, भण्डारण व विक्रय के समय विशेष गुणवत्ता, पैकिंग, लेबलिंग तथा स्वच्छता के पैरामीटर बनाये रखना अति आवश्यक है । फल व सब्जी के संरक्षण करने वाले उत्पादककर्ता जिन्हें अपने उत्पाद पर FPO चिह्न लगाना है, दिये जाते हैं । यह अधिनियम डिब्बों व बोतलों में संरक्षित (Preserved) उत्पाद; जैसे: अचार, मुरब्बे, फलों का रस, स्क्वैश, फ्रोजन सब्जियाँ और फल बाजार में बेचे जाएँ ।
क्षतिपूर्ति प्राप्ति की विधि: (Procedure for Seeking Redressal):
अनुराग ने D.N.R. कम्पनी से एक रंगीन बड़ा टेलीविजन खरीदा । एक महीने वह ठीक प्रकार चला परन्तु उसके पश्चात् टी. वी. से एक अजीब प्रकार की आवाज आने लगी । अनुराग ने तुरन्त विक्रेता को इस बात की शिकायत की । विक्रेता ने कहा कि वे टी.वी. निर्माता कम्पनी को लिखेंगे तथा वहाँ से मैकेनिक आकर जाँच-पड़ताल करेगा ।
अनुराग ने एक हफ्ते बाद फिर दुकानदार से शिकायत की तथा इस बार शिकायत लिखित में दर्ज की । दुकानदार ने फिर उससे पहली बात दुहरा दी । इस प्रकार तीन-चार महीने बीत गये । अनुराग व उनका परिवार परेशान हो गया क्योंकि परिवार के सदस्य व बच्चे अपना मनोरंजन नहीं कर पा रहे थे तथा अनुराग की मेहनत की कमाई टी.वी. खरीदने में लग गई थी ।
अनुराग के दोस्त विशाल ने उसे सलाह दी कि वह उपभोक्ता मंच में शिकायत करे तो शायद उसकी समस्या का समाधान हो सकता है ।
उपभोक्ता मंच में शिकायत दर्ज करने से पहले अनुराग को निम्न जानकारी होनी चाहिये:
शिकायत कौन दर्जकरा सकता है: (Who can File a Complaints)?
कोई भी उपभोक्ता, उपभोक्ता संगठन, वर्तमान कानून के तहत पंजीकृत स्वयंसेवी संस्था या केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार या केन्द्रशासित राज्य प्रशासन को शिकायत दर्ज करा सकता है । कभी-कभी समस्या एक व्यक्ति की न होकर पूरे समुदाय की होती है तो एक से अधिक व्यक्ति एकत्रित होकर उपभोक्ता संगठन द्वारा एक सामूहिक शिकायत दर्ज करा सकते हैं, जैसे: ट्रेन के ए.सी. कोच में किराया अधिक लेकर रेलवे द्वारा कम सुविधा देने के लिये यात्री सामूहिक रूप से मिलकर शिकायत दर्ज कर सकते हैं ।
शिकायत कब दर्ज करानी चाहिये (When to File a Complaint)?
निम्न सिथितयों में शिकायत दर्ज कराई जा सकती है:
i. वस्तु या सामान में किसी प्रकार की खराबी पायी जाये ।
ii. सेवा में किसी भी प्रकार की कमी पायी जाये ।
iii. किसी वस्तु पर अंकित मूल्य से अधिक मूल्य लिया जाये ।
iv. विक्रेता द्वारा अनुचित व्यापार पद्धति अपनाने के कारण या अनुचित व्यापार के कारण कोई हानि हो या दोष हो जाये ।
v. शिकायत वस्तु की खरीददारी की तिथि या सेवा शुरू होने से दो वर्ष की अवधि के अन्दर-अन्दर ही दर्ज करानी चाहिये ।
शिकायत कहाँ दर्ज करानी चाहये (Where to File a Complaint)?
शिकायत कर्ता मुआवजे की राशि के अनुसार अपनी शिकायत विभिन्न स्तरों के न्यायालय में कर सकता है ।
शिकायत कैसे दर्ज करनी चाहिए (How to File a Complaint)?
a. सबसे पहले उपभोक्ता को होमवर्क करके सभी जरूरी कागज, बिल, कैशमैमो आदि जिनसे सत्यता प्रमाणित होती है एकत्रित करके फाइल में लगा लेना चाहिए ।
b. शिकायत दर्ज कराने से पहले यह अच्छा होगा कि उपभोक्ता विरोधी पक्ष को रजिस्टर्ड एडी. पत्र लिखकर अपनी शिकायत के विषय में जानकारी दे तथा नोटिस में उन्हें अपनी गलती सुधारने के लिये, नोटिस प्राप्त होने से लगभग 15 दिन का समय देना चाहिए ।
c. उपभोक्ता को न्यायालय में शिकायत उचित फार्म पर ही करनी चाहिए । इसके साथ-साथ शिकायत फार्म के साथ सत्यता प्रमाणित करने के लिये प्रमाण पत्रों की फोटो कॉपी लगानी चाहिए ।
d. शिकायत टाइप की हुई होनी चाहिए । इसके साथ पूरे केस के बारे में जानकारी होनी चाहिए । विपक्ष को भेजे गये सभी पत्रों तथा उनके उत्तर सहित सभी सामग्री लगी होनी चाहिए । इसके साथ-साथ हानि का ब्यौरा व जो मुआवजे की माँग है, उसका पूरा ब्यौरा देना चाहिए ।
e. शिकायत की तीन प्रतियों तथा सभी जरूरी पत्रों की फोटो कॉपियाँ सामान्यतया न्यायालय में दी जाती हैं ।
f. शिकायत के साथ एक शपथ पत्र होना चाहिए जिसमें लिखा होना चाहिये कि शिकायत सत्य और सही है तथा संलग्न कागजातों की प्रतियाँ इसको प्रमाणित करती हैं । शपथ पत्र भी नियमित प्रारूप में ही होना आवश्यक है ।
शिकायत फार्म का स्वरूप:
शिकायत का नाम……………….
पता…………………….
शिकायतकर्त्ता का नाम………………….
शिकायतकर्त्ता का पता…………………
विवाद विषय- (तिथि, बिल का नम्बर, चेक का नम्बर आदि दें)
प्रतिवादी द्वारा की गई कार्यवाही…………………..
(मौखिक / लिखित शिकायत का ब्यौरा और मिला उत्तर)
अन्य सूचना:
आप अतिरिक्त सूचना भी, यदि आवश्यक हो तो बिल, पत्र व्यवहार की जेरॉक्स प्रतियों सहित इस पते पर भेज सकते हैं:
शिकायत विभाग, उपभोक्ता प्रशिक्षण तथा अनुसंधान केन्द्र (CERC) ठकोरी भाई देसाई स्मारक भवन, लॉ गार्डन के समीप एलिसब्रिज अहमदाबाद- 380006.
उपभोक्ता संरक्षण संशोधन अधिनियम, 2002 (Consumer Protection Amendment Act, 2002):
भारत सरकार ने 30 जुलाई, 2002 को उपभोक्ताओं के ज्यादा और अच्छे संरक्षण के लिए उपभोक्ता संरक्षण संसाधन अधिनियम पारित किया ।
इस अधिनियम में की मुख्य विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं:
(1) उपभोक्ता की मृत्यु के पश्चात् उसका कानूनी प्रतिनिधि या उत्तराधिकारी उसका प्रतिनिधित्व करेगा ।
(2) ‘व्यापारी’ शब्द का अर्थ अब ‘व्यापारी या सेवा प्रदाता’ होगा ।
(3) निर्माता का मतलब ऐसे व्यक्ति से है, जो किसी माल या उसके भाग का निर्माण करता है, अन्य व्यक्तियों द्वारा बनाये गये भागों को संयोजित करता है, तथा बनाए गए माल पर अपना स्वयं का चिह्न लगाता है ।
(4) ‘नियम’ का अर्थ ‘राष्ट्रीय आयोग’ द्वारा निर्धारित नियम होंगे ।
(5) नकली वस्तुओं / सेवाओं का अर्थ ऐसी वस्तुओं और सेवाओं से है, जिनके असली होने का दावा किया गया है किन्तु वे वास्तव में असली नहीं हैं ।
उपभोक्ता संरक्षण संशोधन बिल, 2011 ( Consumer Protection Amendment Act, 2011):
इस एक्ट में कई संशोधन किए गए हैं तथा इस एक्ट को अब उपभोक्ता संरक्षण संशोधन अधिनियम (2011) के नाम से जाना जाता है ।
इस अधिनियम की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
1. उपभोक्ता की मृत्यु के पश्चात् उसको कानूनी प्रतिनिधि या उत्तराधिकारी उसका प्रतिनिधित्व करेगा ।
2. ‘व्यापारी’ शब्द का मतलब अब ‘व्यापारी या सेवा प्रदाता’ होगा ।
3. ‘निर्माता’ का मतलब कोई व्यक्ति जो निर्माता है या उसका कोई हिस्सा बनाता है या एकत्र करता है या उस पर अपना मार्क लगाता है ।
4. ‘नियम’ का मतलब ‘राष्ट्रीय कमीशन’ द्वारा निर्धारित नियम होंगे ।
5. नकली वस्तुओं/सेवाओं का मतलब वे वस्तुएँ/सेवाएँ हैं जो वास्तविक होने का दावा करती हैं, पर हैं नहीं ।
6. जिला स्तरीय उपभोक्ता संरक्षण कौंसिल राज्य सरकार द्वारा निर्धारित होगी । इनका उद्देश्य उपभोक्ता को उनके अधिकार तथा संरक्षण प्रदान करेगा ।
7. अनुचित व्यापार आचरण के अन्तर्गत निम्नलिखित को भी शामिल किया गया है:
(i) शिकायत दर्ज करने के 30 दिन बाद तक भी वस्तु या सेवा वापिस न लेना ।
(ii) किसी व्यक्ति की गोपनीय व्यक्तिगत जानकारी को प्रकट (disclose) करना ।
8. बिल में शिकायत का निवारण शिकायत करने की तारीख से 21 दिन तक होता था । संशोधित बिल में यह अवधि बढ़ाकर 28 दिन कर दी गई है ।
9. जिला, राज्य व केन्द्र न्यायालय के आदेश को न्यायालय आज्ञप्ति (Court decree) की तरह लागू किया जाए । यदि ऐसा न हो तो जुर्माना लग सकता है ।